*प्रश्न हमारा, उत्तर आपका*
*अध्याय 1*
*प्रश्न 1:*
(a) जिनसे युद्ध करना था, वे सभी आत्मीय और वरिष्ठ थे। जब अर्जुन ने उन्हें अपने सामने देखा, तो उसके शरीर और मन पर क्या प्रभाव पड़ा और उसे क्या महसूस हुआ?
(b) अर्जुन ने युद्ध न करने के लिए कौन-कौन से कारण बताए?
(c) पहले अध्याय के अंत में अर्जुन ने क्या निर्णय लिया?
*उत्तर 1: Hemangini ben*
(a) जिनसे युद्ध करना था, वे सभी आत्मीय और वरिष्ठ थे। जब अर्जुन ने उन्हें अपने सामने देखा, तो उसके शरीर कपने लगा ठीक से वो खड़े भी नहीं रह सकते थे, उनका मुंह सुखने लगा, उन्हें अपने शरीर की शक्ति कम होती हुई नजर आई, मन विचलीत होने लगा , हाथ में से धनुषबाण गिरने लगा
(b) अर्जुन ने युद्ध न करने के लिए कै करण बताये
* जिनसे वह युद्ध करेंगे वह सब दुश्मन नहीं लेकिन मेरे संगी है और मेरे भाई है
उन्हें डर था कि युद्ध में सब मारे जायेंगे
जो बड़ो के प्रति आदर, भक्ति, और प्रेम है, वह सब परिवार के लोग मेरे हाथों से मारे जायेंगे
उन्हें डर था कि वह पाप कर रहे हैं
अपना स्वजन और कुल का नाश करके मैं कैसे सुखी हो सकता हूं
(c) पहले अध्याय के अंत में अर्जुन ने निर्णय लिया कि, धुतराष्ट्र के सभी पुत्र अगर मेरी हत्या करेंगे तो यह कल्याण कारी होगा
रणभूमि में शोकमग्न अर्जुन ने यह कहकर अपना धनुष छोडकर रथ के पीछे के स्थान पर बैठ गए
Ans 2. Kamal Patil
Ans by Shweta Mittal didi...
दोनों सेनाओं के बीच जाने के बाद अर्जुन के मन में ऐसा विचार आया कि चाहे इस पक्ष के लोग मरे या हमारे पक्ष के हैं तो सभी अपने कोई जन्म से संबंधी है और कोई विद्या से संबंधित है अर्थात गुरुकुल से, नुकसान तो हमारा ही है हमारा ही कुल नष्ट होगा हमारे ही संबंधी मारे जाएंगे और यही सोचकर अर्जुन के मन में कायरता ने घर कर लिया उसका हृदय दुर्बल हो गया पहले तो अर्जुन ने बड़ी सुंदरता से अपने सार्थी कृष्ण को रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाने के लिए कहा था पर अपने ही लोगों को देखकर उसके मन बदल गया और अर्जुन ने युद्ध की इच्छा को त्याग दिया और जो समय-समय पर अपने साथ अनिष्ट कर रहे थे ऐसे अधर्मी कुटुंब जनों पर भी अर्जुन के मन में करुणा रही थी युद्ध के परिणाम में कुल की कुटुंब की देश की क्या दशा होगी इन स्वजन संबंधियों को देखकर अर्जुन के हाथ पैर मुख आदि अंग शिथिल हो रहे थे और मुख सुख जा रहा था जिससे बोल पाना भी कठिन हो रहा था शरीर में कंपन एवं रोमांच हो रहा था अर्थात शरीर के रोंगटे खड़े हो रहे थे हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा था कल तक इसकी आवाज से दुश्मन दहल जाते थे वह धनुष हाथों से उठाने में भी असमर्थ हो रहाथा उसका खड़ा रहना भी मुश्किल हो रहा था और वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिए उसे ऐसा लग रहा था कि ऐसा युद्ध में खड़ा रहना भी पाप है युद्ध भूमि में वह खड़ा रहने में भी असमर्थ महसूस कर रहा था उसका उत्साह नष्ट हो चुका था उसके मन में अनिष्ट विचार आ रहे थे अच्छे शकुन भी नहीं हो रहे थे उन्होंने कृष्ण से बोला अगर मन में संकल्प विकल्प अच्छे नहीं तो उसे कार्य का परिणाम कभी अच्छा नहीं निकलता इसके अलावा अर्जुन ने कई अप शकुन को देखा जैसे आकाश में उल्कापात होना भूकंप आना पशु पक्षियों की भयंकर बोली बोलना बादलों से रक्त की वर्षा होना इन अपशकुनो की वजह से अर्जुन के मन में भय उत्पन्न हो गया और उसने कृष्ण से कहा अपने ही कुटुंबियों को मार कर के क्या लाभ अगर इन्हें मारकर त्रिलोकी का राज्य भी मिले तो भी मैं इन्हें न मारूं फिर पृथ्वी के लिए तो क्या मारूं युद्ध के परिणाम लोक और परलोक दोनों में ही हितनहीं रखते तो ना तो मुझे युद्ध की इच्छा है ना ही मैं विजय चाहता हूं ना ही मुझे राज्य चाहिए उसे वक्त अर्जुन के मन में ना ही विजय की इच्छा थी नहीं राज्य की अर्जुन के मन में यह भी विचार आया कि युद्ध विजय और राज्य तभी सुख देते हैं जब भीतर से उनकी कामना हो जब सुख भोगने के लिए परिवार हो और जब यही मर जाएंगे तो इन्हें कौन भागेगा भोगने की बात तो अलग रह गई हमें अधिक चिंता और शोक होगा अर्जुन ने सोचा यह लोग तो लोभ से ग्रसित होकर कुल का नाश करने में लगे हैं इसके दोष देख नहीं पा रहे हैं पर हमें तो विचार करना चाहिए कुल के नाश होने से धर्म नष्ट हो जाते हैं धर्म के नाश होने से कुल में पाप फैल जाता है पाप के फैलने से कुल की स्त्रियां दूषित हो जाती हैं स्त्रियों के दूषित होने पर वर वर्णसंकर उत्पन्न होते हैं वर्ण संकरों का उत्पन्न कुल को नर्क में ले जाता है पितर श्रद्धा और तर्पण से वंचित रह जाते हैं और अधोगति को प्राप्त होते हैं हम लोग बुद्धिमान होकर राज्य और सुख के लोग के लिए स्वजनों को मारने के लिए तैयार हो गए हैं यदि मुझ कायर अर्थात युद्ध की ना इच्छा रखने वाले को अगर धृतराष्ट्र के पुत्र मर भी डालें तो भी मेरे लिए कल्याण कारक होगा इस प्रकार रणभूमि में शोक से ग्रसित होकर बाण सहित धनुष को त्याग कर युद्ध न करने की इच्छा रखते हुए अर्जुन पीछे जाकर बैठ गया
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