नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च |
पशूनां पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ||१||
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय च शांतये |
ईशानाय मखघ्नाय नमोस्त्वन्धकघातिने ||२||
कुमारगुरवे तुभ्यं नीलग्रीवाय वेधसे |
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा ||३||
होत्रे पोत्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे |
अचिंत्यायांबिकाभर्त्रे सर्वदेवस्तुत्याय च ||५||
वृषध्वजाय मुण्डाय जटिने ब्रह्मचारिणे |
तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च ||६||
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य तिष्ठते |
नमोनमस्ते सेव्याय भूतानां प्रभवे सदा ||७||
ब्रह्मवक्त्राय सर्वाय शंकराय शिवाय च |
नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नम: ||८||
अभिगम्याय काम्याय स्तुत्यायार्याय सर्वदा|
नमोस्तु देवदेवाय महाभूतधराय च||९||
नमो विश्वस्य पतये पत्तीनां पतये नम: |
नमो विश्वस्य पतये महतां पतये नम:||१०||
नम: सहस्त्रशिरसे सहस्त्रभुजमृत्यवे|
सहस्त्रनेत्रपादाय नमोअसंख्येय कर्मणे ||११||
नमोहिरण्यवर्णाय हिरण्यकवचाय च|
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वर: प्रभो ||१२||
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेव: सहार्जुन: |
प्रसादयामास भवं तदा ह्यस्त्रोपलब्धये ||१३||
॥ इति रुद्राभिषेकस्तोत्रम् संपूर्ण ॥
पशूनां पतये नित्यमुग्राय च कपर्दिने ||१||
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय च शांतये |
ईशानाय मखघ्नाय नमोस्त्वन्धकघातिने ||२||
कुमारगुरवे तुभ्यं नीलग्रीवाय वेधसे |
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा ||३||
विलोहिताय धूम्राय व्याधायानपराजिते |
नित्यं नीलशिखण्डाय शूलिने दिव्यचक्षुसे ||४||
नित्यं नीलशिखण्डाय शूलिने दिव्यचक्षुसे ||४||
होत्रे पोत्रे त्रिनेत्राय व्याधाय वसुरेतसे |
अचिंत्यायांबिकाभर्त्रे सर्वदेवस्तुत्याय च ||५||
वृषध्वजाय मुण्डाय जटिने ब्रह्मचारिणे |
तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च ||६||
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य तिष्ठते |
नमोनमस्ते सेव्याय भूतानां प्रभवे सदा ||७||
ब्रह्मवक्त्राय सर्वाय शंकराय शिवाय च |
नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नम: ||८||
अभिगम्याय काम्याय स्तुत्यायार्याय सर्वदा|
नमोस्तु देवदेवाय महाभूतधराय च||९||
नमो विश्वस्य पतये पत्तीनां पतये नम: |
नमो विश्वस्य पतये महतां पतये नम:||१०||
नम: सहस्त्रशिरसे सहस्त्रभुजमृत्यवे|
सहस्त्रनेत्रपादाय नमोअसंख्येय कर्मणे ||११||
नमोहिरण्यवर्णाय हिरण्यकवचाय च|
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वर: प्रभो ||१२||
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेव: सहार्जुन: |
प्रसादयामास भवं तदा ह्यस्त्रोपलब्धये ||१३||
॥ इति रुद्राभिषेकस्तोत्रम् संपूर्ण ॥
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