Buddhi De Raghunayaka: बुद्धि दे रघुनायका:

Buddhi de Raghunayaka 


युक्ति नाही  बुद्धि  नाही| विद्या नाही विवंचिता|

नेणता भक्त मी तुझा | बुद्धि दे रघुनायका ||१||

मन हे आवरेना की | वासना वावडे सदा|

कल्पना धावते सैरा| बुद्धि दे रघुनायका ||२||

अन्न नाही वस्त्र नाही| सौख्य नाही जनामध्ये |

आश्रयो पाहता नाही | बुद्धि दे रघुनायका ||३||

बोलता चालता येना| कार्य भाग कळेचिना |

बहुत पिडिलो लोकी | बुद्धि दे रघुनायका ||४||

तुझा मी टोणपा झालो| कष्टलो बहुतांपरी |

सौख्य ते पाहता नाही | बुद्धि दे रघुनायका ||५||

नेटके लिहिता येणार | वाचिता चुकतो सदा | 

अर्थ तो सांगता येना | बुद्धि दे रघुनायका ||६||

प्रसंग वेळ तर्केना | सुचेना दीर्घ सूचना ||

मैंत्रिकी राखता येना | बुद्धी दे रघुणायका || ७||

संसारी श्लाघ्यता नाही | सर्वही लोक हासती |

विसरू पडतो पोटी | बुद्धी दे रघुनयका|| ८ ||

चित्त दुश्चित् होता हे | ताळतंत्र कळेचिना ||

आळसू लागला पाठी | बुद्धि दे रघुनायका ||९ ||

कळेना स्फुर्ती होईना | आपदा लागली  बहु |

प्रत्यही पोट | बुद्धि दे रघुनायका ||१०||

संसार नेटका नाही | उद्वेग वाटतो जिवी | 

परमार्थ आकळेना  की | बुद्धि दे रघूनायका || ११ ||

देईना पूर्विना कोण्ही| उगेची जन हासती |

लौकीक राखिता येना | बुद्धि दे रघुनायका ||१२||

पीशुणे वाटती सर्वे| कोणीही मजला नसे |

समर्था तू दयासिंधू | बुद्धि दे रघुनायका ||१३||

उदास वाटते जीवी | आता जावे कुणीकडे | 

तू भकतवत्सला रामा | बुद्धि दे रघुनायका ||१४||

काया वाचा मनोभावे | तुझा मी म्हणवितासे |

हे लाज तुजला माझी | बुद्धि दे रघुनायका ||१५||

सोडविल्या देवकोटी | भुभार फेडीला बळे|

भक्तासी आश्रयो मोठा | बुद्धि दे रघुनायका ||१६||

भक्त उदंड तुम्हाला | आम्हाला कोण पूसते |

ब्रीद हे राखणे आधी | बुद्धि दे रघुनायका ||१७||

उदंड ऐकिली किर्ती | पतित पावना प्रभो |

मी एक रंक निर्बुद्धी  | बुद्धि दे रघुनायका ||१८||

आशा हे लागली मोठी | दयाळूवां दया करी |

आणीक नलगे काही | बुद्धि दे रघुनायका ||१९||

रामदास म्हणे माझा | संसार तुज लागला | 

संशयो  वाटतो पोटी | बुद्धि दे रघुनायका ||२०||

जय जय रघुवीर समर्थ||




 










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